Nirankari Live
साध संगत जी हुज़ूर सच्चे पातशाह जी फरमाते हैं कि
बाहरी आवरण की बजाय मन से हो सत्संग
सत्संग बाहरी शारीरिक दिखावे की बजाय मन से होना चाहिए
सत्संग बाहरी शारीरिक दिखावे की बजाय मन से होना चाहिए
सत्संग में तन अवश्य आता है परंतु मन ही इसे ग्रहण करता है
सत्संग में तन अवश्य आता है परंतु मन ही इसे ग्रहण करता है
सत्संग में संतों महापुरुषों के हर वचन ध्यान से सुनना और ग्रहण करना है
सत्संग में संतों महापुरुषों के हर वचन ध्यान से सुनना और ग्रहण करना है
केवल एक प्रथा का रूप बनाकर सत्संग में आने से कोई लाभ नहीं होगा
केवल एक प्रथा का रूप बनाकर सत्संग में आने से कोई लाभ नहीं होगा
सत्संग में केवल शरीर को बिठा देना ही काफी नहीं है बल्कि मन से संत महात्माओं के वचनों एवं उनकी भावनाओं को श्रवण करके ग्रहण करना होता है
सत्संग में केवल शरीर को बिठा देना ही काफी नहीं है बल्कि मन से संत महात्माओं के वचनों एवं उनकी भावनाओं को श्रवण करके ग्रहण करना होता है
सत्संग में जाति पाति का कोई स्थान ही नहीं होता
सत्संग में जाति पाति का कोई स्थान ही नहीं होता