Nirankari Vichar : जब किसी घर में बच्चा पैदा होता है तब न हिन्दू होता है न मुसलमान, न सिख, न ईसाई, बच्चा केवल बच्चा होता है। वह अगर हिन्दू के घर में पलता बढ़ता है तो हिन्दू कहलाने लगता है और अगर मुसलमान, सिख, ईसाई के घर में परवरिश पाता है तो मुसलमान, सिख, ईसाई कहलाने लगता है। हिन्दू, मुसलमान, सिख या ईसाई सभी का अलग-अलग व्यक्तित्व है लेकिन जब बच्चा पैदा हुआ था तो वह केवल इंसान था। मानो हिन्दू, मुसलमान, सिख या ईसाई ऊपर से सीखी गई बातें हैं फिर इस सूरत में बच्चा हिन्दी सीखे, उर्दू सीखे, पंजाबी या अग्रेंजी सीखे जो भी भाषा बच्चा सीखेगा वही उसकी भाषा हो जाएगी हालांकि जब बच्चा पैदा होता है तो मौन पैदा होता है, अबोध शिशु की कोई भाषा, जात-पाँत नही होती।
Nirankari Vichar In Hindi
बच्चे को आगे जो भी सिखाया जाता है वह सीखता चला जाता है और जब वही बच्चा प्रौढ़ हो जाता है तो उसके चारों तरफ एक ढांचा निर्मित हो जाता है भाषा का व्यवहार का व्यक्तित्व का राष्ट्र का, जात-पाँत का आचरण व धर्म का और इस ढांचे को हम समझने लग जाते है कि हम यह हैं। सच तो यह है कि हम जिसको अभी तक अपना होना समझते आ रहे हैं इस बात ने ही हमसे हमारा असली मानव वाला, व्यक्तित्व छीन लिया है। [Nirankari Vichar In Hindi] इस नकली व्यक्तिव को उतार फेंकने की प्रक्रिया ही असली धर्म है और यही मानवता है। जब समय के सद्गुरु की कृपा से हम अपने ऊपर चढ़ी ऊपरी परत को उतार फेंकते हैं और हमारे पास मूल सहज स्वभाव, जो हमारे जन्म के पहले भी हमारे पास था और जब हम नहीं रहेंगे तब भी हमारे पास होगा, जब यह शुद्धतम स्वरूप हमारे पास रह जाता है तो हमारा मिलाप परमात्मा से होता है। वास्तविकता तो यह है कि यह जो झूठ है इसी के खोने की बात है, हमारे खोने की तो कोई बात ही नहीं है लेकिन विडम्बना यह है कि इस बात का पता हमें नहीं होता है।
यह सारी सृष्टि एक इकाई है, जड़-चेतन जगत का ज़र्रा-ज़र्रा एक दूसरे पर आधारित है। पूरा ब्रह्मांड एक ईकाई है। इसमें कोई उथल-पुथल हो तो सारा समाज प्रभावित होता है।
इक्को सूरत रंग अनेकां सारा ताणा बाणा आप।
आप समुन्दर आपे लहरां कंढा आप मुहाणा आप। [Nirankari Vichar]
जब तक हम मानवता पर आधारित सह-अस्तित्व का रहस्य जानने की कला सद्गुरु द्वारा नहीं सीख लेते, हम मानवता की वास्तविकता को नहीं जान पाते क्योंकि जब तक मानव, मानव के करीब नहीं आता तब तक एकता, अखण्डता और जीवन में मानवता का स्थान सुनिश्चित नहीं हो पाता। वाकई! एक को जानो, एक को मानो, एक हो जाओ, जीवन में मानवता के स्थान को जानने का महान सूत्र है ।
76 वां निरंकारी सन्त समागम 2023