Nirankari Vichar Satguru Baba Hardev Singh Ji

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Nirankari Vichar Satguru Baba Hardev Singh Ji

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Nirankari Vichar Satguru Baba Hardev Singh Ji Maharaj | Nirankari Rehmatein

साध संगत जी प्रेम से कहना धन निरंकार जी

साध संगत जी प्रेम से कहना धन निरंकार जी साध संगत Nirankari Vichar Satguru Baba Hardev Singh Ji निरंकारी मिशन एक अरसे के बाद फिर से आज यहाँ जोधपुर आने का मौका मिला है। जहाँ आकर आप सभी के इस विशाल रूप में दर्शन करने का मौका मिल रहा है, जिस वातावरण को देखने की चायना दुनिया के मन में होती है, प्यार के मधुर तराने गाये जाये और सुने जाये उसी प्यार की महक में जीवन की घड़िया बिताई जाये ऐसी भावना लिए हुए आज आप यहाँ एकत्रित हुए है।
राजस्थान में अक्टूबर में सीकर, चुरू यहाँ सत्संग करने का मौका मिला फिर समागम के बाद जयपुर आदि स्थान वे जाने का मौका मिला और अभी इस यात्रा का जोधपुर पहला ही पड़ाव।

जहाँ आप पारिवारिक सामाजिक जिम्मेदारियों निभाते है वही पर आधार निराकार को बनातें है, सच्चा आधार यही है और इसी रौशनी में सफर तय करने वाले अपने लिए भी और संसार के लिए भी वरदान साबित होते है।

आज भी हम संतो का नाम श्रद्धा के साथ लेते है।

आज भी हम संतो का नाम श्रद्धा के साथ लेते है जिन्होंने सत्य को आधार बनाया, Nirankari Vichar Satguru Baba Hardev Singh Ji सच्च का वनज किया, चाहे वो किसी भी युग में हुए, बालपन, जवान या बुजुर्ग थे चाहे किसी राज्य के राजा के रूप में थे या कोई मेहनत मुशक्क्त करने वाले थे । आज कल राम नवमी के दिन है वही राजा जनक का भी जिक्र आ रहा है, दुनियावी ताकद होने के बावजूद उन्होंने आधार सत्य का ही लिया और दुनिया में भी ऐसे उदाहरण देखने को मिलतें है जो संसार में रहते हुए संसार में गलतान नही हुए, उन्होंने सत्य के सामान किसी दुनिया और अन्य ताकद को विशेषता नही दी।

इस संसार में हमारी प्राथमिकता क्या है?

इस संसार में हमारी प्राथमिकता क्या है? जीवन में हमें चयन करने की आजादी दी गयी और हमने चयन क्या किया उस से ही इंसान का म्यार- कद पता चलता है, एक प्यार, निष्काम भाव को चुनता है और दूसरा अहम अभिमान को चुनता है और जिसने जो चुना उसी के अंतर्गत ही उसका जीवन बनता गया। एक तरने और तारने वाला बन गया, और दूसरी तरफ डूबने का समान इकट्ठा किया गया और संसार में अब उसका नाम लेने वाला कोई बचा नही।

इस पैगाम की हर युग में महत्ता रही।

इस पैगाम की हर युग में महत्ता रही,जैसे सूर्य की एहमियत किसी युग में कम नही हुई, किसी देश में कम नही हुई और देखा जाये तो सूर्य इस परमात्मा की रचना है, कादर की कुदरत का हिस्सा यह सारा विश्व है और अगर कादर की बनाई कुदरत का महत्व हर युग में है तो कादर की महत्ता नही है क्या?

संसार इस सन्देश से कितना लाभ ले रहा है ?

लेकिन इस संसार सन्देश से कितना लाभ ले रहा है, सूरज की रौशनी का फायदा उसे नही जो चादर ओढ़े सो रहा है, वैसे ही संसार इस सन्देश की तरफ अनदेखी करता है, दोनो ही पहलू संसार में देखने को मिलते है, सतयुग में भक्त प्रल्हाद जो उजाले को महत्ता देता है, और दूसरी तरफ हिरण्यकश्यप जैसे अंधकार को महत्व देते है, ऐसे अनेक पात्र हमें त्रेता में भी देखने को मिल जातें है रावण के रूप में। हर युग में ऐसे रूप हमें देखने को मिल जातें है। आज भी कलयुग में एक वो है जो इंसानियत में यकीन रखते है, इंसानियत को मजबूत करने में योगदान देते है, और वो भी है जो चारो तरफ बर्बाद करने में लगे हुए है, ऐसे भी है जो अपने आप को कड़कती धुप में रहेंगे वृक्ष की तरह जो दुसरो को छाया प्रदान करतें है।

महत्ता उन्ही की जिन्होंने सत्य को चुना।

कांटे और फूल दोनों इस संसार में रहे लेकिन महत्ता उन्ही की जिन्होंने सत्य को चुना वो ही ऊँची अवस्था में जीते चले गए। आज बच्चे भी कह रहे है जो सत्य काल के अधीन नही, जैसे मौसम में बदलाव आता है, जहा आज कल यहाँ गर्मी है तो दुनिया के किसी कोने में बर्फ पड़ रही है, जीवनमें भी बालपन से लेकर बुढ़ापा यह बदलता रहता है, लेकिन सत्य हर समय हर जगह पूरा है, जल में थल मैं कण कण में विराजमान है, जो सत्य के साथ जुड़ता है वह स्वर्ग बनाने का कारण बनता है लेकिन झूठ के साथ जुड़कर इंसान इस संसार को दोजख बना रहा है,जो इंसान से जो उम्मीद की जा सकती है वह पशुओ से नही की जा सकती, इंसानी योनि जिसमें सबसे अधिक सोचने की समझने की ताकद दी लेकिन यही कदम कदम पर गिरता है, डूबने के सामान पैदा करता है, इस तरह के प्रमाण इंसान देता चला आ रहा है। इसलिए संत इंसान को सुचेत करते है की उस रस्ते पे मत चल जिस और चलने से तुझे शर्मिदगी उठानी पड़ेगी, बोझ से निजात पाने का यह वक्त है। जिन्होंने सत्य को अपना लिया, Nirankari Vichar वही विवेकी जन साबित हुए, इसी लिए संतो की संगती करने को कहा गया, खोजना है तो सत्य को नही, ब्रम्हज्ञानी को खोजो जिनसे यह राह आसान हो जाती है।
जिनको ब्रम्हज्ञानी का संग मिल जाता है फिर जैसे यह सत्य मीराबाई जी को गुरु रविदास जी के चरणों में जा कर प्राप्त हुआ, ऐसी ही दौलत के भागीदार हर कोई बने यह संदेश संत दे रहे है।

यह आवाज केवल कानो तक सिमित ना रह जाए।

यह आवाज केवल कानो तक सिमित ना रह जय, दुनिया की निंदा सुना अनसुना करना बेहतर है, उनको सुन के धारण करके अपने पैरो पर कुरहाडी न मारें इस से बेहतर उसे सुना अनसुना करदे लेकिन महापुरुषों के वचन सुनने ही नही बल्कि उनका मनन भी करने वाले ही दोनों जहानों की बाजी जितने वाले बन जातें है।

दातार कृपा करें सभी इस से लाभ उठाये। इस वर्ष का आगमन राजस्थान की तरह ही रेतीले इलाके में हुआ, दास उस वक्त दुबई में था और देखने को मिला रेतीले इलाके में भी हरियाली छा जाते है तो कितना अच्छा लगता है, वैसे ही सत्य को धारण करने से सुंदरता निखरती, वह सुंदरता सीरत की है भावना की है,
सभी यही सुंदरता बढ़ाते जाये।

और आज जैसे जोधपुर में आने का अवसर बना है ऐसे अवसर बनते चले जाये, भक्ति वाले भाव देखने के मौके बनते चले जाये, इसी भावना के साथ दास आपसे इजाजत चाहेगा

साध संगत जी, धन निराकार जी !

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